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बुधवार, 2 जून 2010

सैर सपाटा

कलकत्ते से दमदम आए
बाबू जी के हमदम आए
हम वर्षा में झमझम आए
बर्फी, पेड़े, चमचम लाए।
खाते पीते पहुँचे पटना
पूछो मत पटना की घटना
पथ पर गुब्बारे का फटना
तांगे से बेलाग उलटना।
पटना से हम पहुँचे रांची
रांची में मन मीरा नाची
सबने अपनी किस्मत जांची
देश देश की पोथी बांची।
रांची से आए हम टाटा
सौ सौ मन का लो काटा
मिला नहीं जब चावल आटा
भूल गए हम सैर सपाटा !
( बचपन में यह कविता जोर-जोर से पढता था। मानसून की खबरों को देखकर इस कविता की याद आ गयी. आरसी प्रसाद सिंह की इस कविता का आप भी मजा उठाये। )