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शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

अथ श्री भारत कथा


(गुरुवार को राष्ट्रमंडल खेलों का समापन हो गया अब अगले कुछ दिनों तक हम भारत की बात करेंगे उस भारत की जो हमारी आत्मा है जानेंगे भारत और इंडिया के द्वन्द को आज बात उस भारत की जिसने इंडिया के आयोजन को शानदार बनाया और हमें कुछ दिनों के लिए स्याह दुनिया को भूलने के लिए मजबूर कर दिया...)
एक सप्ताह पहले तक आशीष कुमार का नाम उनके शहर इलाहाबाद में भी अंजाना था। आज पूरे भारत को उनपर गर्व है। आशीष से पहले हमने कभी सोचा भी नहीं था कि जिम्नास्टिक में कोई पदक मिलेगा। 19 साल के आशीष के कारनामे से पहेले हम मजबूर थे आंख फाड़ कर विदेशियों को देखने और उनके शारीर के लचक पर ताली बजाने के लिए। 16 साल कि दीपिका झारखण्ड के चितपुर गाँव से आती हैं। पिता ऑटो चलते हैं। राजनैतिक उठापटक और धोनी के लिए मशहूर इस राज्य की नई पहचान हैं दीपिका। अंतिम दौर में परफेक्ट टेन का स्कोर ऐसे ही नहीं बनता। असली भारत हमें कदम-कदम पर अचूकता सिखाती है। दीपिका ने जिंदगी से जो सीखा उसे मैदान पर उतारकर हमारे लिए खुशियाँ चुरा लाती हैं। इस खेल ने कई और हीरो दिए, उनमे राहुल बनर्जी भी एक हैं।
जिस देश में क्रिकेट धर्म हो और उसके खिलाडी भगवान। जहा सफलता इंडिया की बपौती मानी जाती है। जहां भारत का मतलब लाचारी और बेबसी से हों, वहां छोटे-छोटे गांव और कस्बों से निकले इन सितारों नेसाडी परिभाषा ही बदल दी है। जब लॉन टेनिस में भूपति, पेस और सानिया जैसे इंडियन हमें निराश कर देते हैं तो भारत का एक बेटा आता है "सोमदेव वर्मन"। आरके खन्ना स्टेडियम में सबके चेहरे पर गर्व लाता हैं और आँखों में ख़ुशी के आसूं। ये दूसरी बात है कि सोना साधने के बाद भी उसके चेहरे पर बाल सुलभ मुस्कान ही दीखता है। ये मासूमियत भारत हमें सिखाता है, इसे इंडिया में हम अक्सर मिस करते हैं। बोक्सिंग में अखिल और विजेंदर जब निराशा के अंधकार में हमें छोड़ जाते हैं तो मनोज, सुरंजोय, समोटा आते हैं। दस दिन पहले तक हम इनका नाम नहीं जानते थे, आज ये हमारे हीरो हैं। छोटे- छोटे गावों से आये हैं। बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर पेश करने वालों की ये फेहरिस्त लम्बी है। गीता, योगेश्वर, अलका, सरथ कमल, रमेश कुमार, कृष्ण पुनिया, रवि कुमार, विजय कुमार, नरसिंह यादव, ओमकार सिंह, रेनू बाला, अनीसा, अनीता, हिना... खेल से पहले अलग कारणों से सुर्खिया बटोरने वाली ज्वाला जब अश्वनी के साथ मैदान पर आती हैं तो हमें विपरीत हालत से लड़ना सिखाती हैं। बचपन से कदम-कदम पर भारत हमें यही तो सिखाता है।
जारी....

1 टिप्पणी:

  1. अगर भारत में खेलों से राजनीति हट जाए, और खेल संघों से राजनीतिबाजों को बाहर कर दिया जाए तो ओलंपिक में भी यही प्रदर्शन दोहराया जा सकता है.

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